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शेर
मुझे है फ़िक्र ख़त भेजा है जब से उस गुल-ए-तर को
हज़ारों बुलबुलें रोकेंगी रस्सी में कबूतर को
तअशशुक़ लखनवी
शेर
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर
कैसे रोकूँ कि वो आँसू मिरी आँखों से गिरा जाता है
फ़रहत एहसास
शेर
कह दो साक़ी से कि प्यासा न निकाले मुझ को
उम्र-भर रोएँगे मिट्टी के पियाले मुझ को