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शेर
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
हज़ार तरह के क़िस्से सफ़र में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मेरे यूसुफ़ की ज़ुलेख़ा तू ख़रीदार है क्या
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
जिंस तो है पे ज़ुलेख़ा सा ख़रीदार कहाँ
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
शेर
रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ऐ ख़य्यात
सिया जाए तो सी पहले तू चाक-ए-दिल ज़ुलेख़ा का
रज़ा अज़ीमाबादी
शेर
ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
जो ख़ुद खींच कर न आ जाए उसे मंज़िल नहीं कहते
वासिफ़ देहलवी
शेर
ये ज़ख़्म-ए-अना काफ़ी है ऐ यूसुफ़-ए-दौराँ
इस चश्म-ए-ज़ुलेख़ा को तू ग़मनाक न करना