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शेर
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया
मुनीर नियाज़ी
शेर
सीटी की आवाज़ सुनी और सारा माज़ी लौट आया
पस-मंज़र में रेल नहीं है पूरा एक अफ़्साना है