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शेर
ख़्वाहिशें ख़ून में उतरी हैं सहीफ़ों की तरह
इन किताबों में तिरे हाथ की तहरीर भी है
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
सफ़र में भी तो सदियों की मसाफ़त चाहिए है