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शेर
कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना
तख़ल्लुस 'दाग़' है वो आशिक़ों के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
शेर
तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है
जिधर देखो जिगर थामे हुए दो-चार बैठे हैं
इम्दाद इमाम असर
शेर
लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे
'ज़फ़र' वाइज़ हूँ मैं और ख़िदमत-ए-इस्लाम करता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
शेर
आशिक़ों को नफ़अ कब है इंक़िलाब-ए-दहर से
हम वही बंदे रहेंगे बुत ख़ुदा हो जाएँगे
लाला माधव राम जौहर
शेर
रोज़-ए-विसाल जिस को कहती है ख़ल्क़ वो ही
मज़हब में आशिक़ों के रोज़-ए-वफ़ात भी है