aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "قلق"
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल काबस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सहीतू नहीं और सही और नहीं और सही
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरींसभी मजबूर हैं दिल से मोहब्बत आ ही जाती है
तुझ से ऐ ज़िंदगी घबरा ही चले थे हम तोपर तशफ़्फ़ी है कि इक दुश्मन-ए-जाँ रखते हैं
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ होये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं
अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रहीदुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को
उस को ख़िज़ाँ के आने का क्या रंज क्या क़लक़रोते कटा हो जिस को ज़माना बहार का
मूसा के सर पे पाँव है अहल-ए-निगाह काउस की गली में ख़ाक उड़ी कोह-ए-तूर की
बोसा देने की चीज़ है आख़िरन सही हर घड़ी कभी ही सही
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहींकिस दिन बहार आई मैं दीवाना कब हुआ
किधर क़फ़स था कहाँ हम थे किस तरफ़ ये क़ैदकुछ इत्तिफ़ाक़ है सय्याद आब-ओ-दाने का
आख़िर इंसान हूँ पत्थर का तो रखता नहीं दिलऐ बुतो इतना सताओ न ख़ुदा-रा मुझ को
न ये है न वो है न मैं हूँ न तू हैहज़ारों तसव्वुर और इक आरज़ू है
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधरदामन अबद में है तो गरेबाँ अज़ल में है
फिर मुझ से इस तरह की न कीजेगा दिल-लगीख़ैर इस घड़ी तो आप का मैं कर गया लिहाज़
कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ थादैर में जो पाक था का'बे में वो नापाक था
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू हैफ़क़त मैं ही मैं हूँ तो फिर तू ही तू है
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत हैक्या बानी-ए-इस्लाम भी ग़ारत-गर-ए-दीं था
है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहनेकुछ नहीं है तो दिल-लगी ही सही
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