aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "منظم"
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिएकि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
मुझ से अब लोग कम ही मिलते हैंयूँ भी मैं हट गया हूँ मंज़र से
तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखामुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
दर्द हो दिल में तो दवा कीजेऔर जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करोहोश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
सिर्फ़ इतने के लिए आँखें हमें बख़्शी गईंदेखिए दुनिया के मंज़र और ब-इबरत देखिए
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुईख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटताभीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
अच्छी क़िस्मत अच्छा मौसम अच्छे लोगफिर भी दिल घबरा जाता है बाज़ औक़ात
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गएमैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गएऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
ग़म में कुछ ग़म का मशग़ला कीजेदर्द की दर्द से दवा कीजे
वो हबीब हो कि रहबर वो रक़ीब हो कि रहज़नजो दयार-ए-दिल से गुज़रे उसे हम-कलाम कर लो
उफ़ुक़ के आख़िरी मंज़र में जगमगाऊँ मैंहिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो ख़ुद को पाऊँ मैं
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गएमैं ज़िंदगी के नाज़ उठाने में रह गया
बाप बोझ ढोता था क्या जहेज़ दे पाताइस लिए वो शहज़ादी आज तक कुँवारी है
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न होलफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़रवो आईने में तो बस मुख़्तसर सा रहता है
अजब पुर-लुत्फ़ मंज़र देखता रहता हूँ बारिश मेंबदन जलता है और मैं भीगता रहता हूँ बारिश में
जितनी आँखें थीं सारी मेरी थींजितने मंज़र थे सब तुम्हारे थे
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