aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "موسی"
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती हैमैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
मूसा के सर पे पाँव है अहल-ए-निगाह काउस की गली में ख़ाक उड़ी कोह-ए-तूर की
हमें भी जल्वा-गाह-ए-नाज़ तक लेते चलो मूसातुम्हें ग़श आ गया तो हुस्न-ए-जानाँ कौन देखेगा
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर कामूसा नहीं जो सैर करूँ कोह तूर का
काश मैं तेरी मुलाक़ात को ख़ुद ही आतातूर पर भेज के मूसा को पशेमाँ हूँ मैं
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगेमैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
ग़श खा के गिरा पहले ही शोले की झलक सेमूसा को भला कहिए तो क्या तूर की सूझी
ख़ुदा की देन का मूसा से पूछिए अहवालकि आग लेने को जाएँ पयम्बरी मिल जाए
ढूँड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोतीये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
जल्वा-ए-तूर ख़्वाब-ए-मूसा हैकिस ने देखा है किस को देखा है
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आएऔर कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देतायहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
रंग ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गयाअपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न थाइस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
मूसा नहीं कि ताब न लाऊँ मैं हुस्न कीबे-पर्दा सामने मिरे तू भी तो आ के देख
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैंमैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आएबरसात के मौसम में सितारे निकल आए
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुईख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा हैतुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगेतुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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