aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "نسر"
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसेतेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहासब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैंहम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहींदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो हैक्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैभूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगाइसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र देहाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर हैये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो कियाताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरतनज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों मेंनज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहींमहफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहींशौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगामुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़रआज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिएनज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम मेंआईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न होमुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवाहसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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