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शेर
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को
दिल-ए-मुज़्तर तड़पता है निहायत बे-क़रारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
वो काम निहायत आसाँ था ये काम बला का मुश्किल है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
शेर
मिरे रश्क-ए-बे-निहायत को न पूछ मेरे दिल से
तुझे तुझ से भी छुपाता अगर इख़्तियार होता
जिगर मुरादाबादी
शेर
ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का
जहाँ जावें वहाँ इक आध को हम ताक रहते हैं