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शेर
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गए
वाह-री ग़फ़लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ये भी न पूछा तुम ने 'अंजुम' जीता है या मरता है
वाह-जी-वा आशिक़ से कोई ऐसी ग़फ़लत करता है
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया