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शेर
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
शेर
फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
साक़ी तिरे हाथों से जो साग़र नहीं मिलता
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
मिरा बेड़ी पहनना था कि दुनिया की हवा बदली
ज़माने की बहारें फट पड़ीं आ के गुलिस्ताँ पर
मंज़र लखनवी
शेर
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
गरेबाँ फट चुका कुइ दम में अब नौबत ही सीने की