aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अकड़"
आशिक़ का बाँकपन न गया बाद-ए-मर्ग भीतख़्ते पे ग़ुस्ल के जो लिटाया अकड़ गया
राज़-ओ-नियाज़ में भी अकड़-फ़ूँ नहीं गईवो ख़त भी लिख रहा है तो चालान की तरह
मुल्ला तिरी अकड़ से ये होने लगा गुमानजैसे ख़ुदा ज़मीं पे नुमूदार हो गया
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता हैअजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगाकिरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में हैअक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहींइश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल हैदिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का हैये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन हैजो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोईऔर बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलानासौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
वो अक़्ल-मंद कभी जोश में नहीं आतागले तो लगता है आग़ोश में नहीं आता
वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा थातमाम उम्र का अब सिलसिला है मेरे लिए
यार मैं इतना भूका हूँधोका भी खा लेता हूँ
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