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शेर
नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं
इशारे हम तिरे ऐ शम-ए-तन्हाई समझते हैं
रविश सिद्दीक़ी
शेर
कहीं कोई दिया जलता है तो उस के इशारे पर
हवा भी उस की मर्ज़ी से चला करती है दुनिया में