aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ऐनक"
नज़दीक की ऐनक से उसे कैसे मैं ढूँडूँजो दूर की ऐनक है कहीं दूर पड़ी है
मय-कदे में नश्शा की ऐनक दिखाती है मुझेआसमाँ मस्त ओ ज़मीं मस्त ओ दर-ओ-दीवार मस्त
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोसऐनक न चाहिए न यहाँ दूरबीं मुझे
कौनैन-ए-ऐन-ए-इल्म में है जल्वा-गाह-ए-हुस्नजेब-ए-ख़िरद से ऐनक-ए-इरफ़ाँ निकालिए
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद कीचाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाईबे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी
बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैंकुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं
है एक ही लम्हा जो कहीं वस्ल कहीं हिज्रतकलीफ़ किसी के लिए आराम किसी का
लगा रहा हूँ मज़ामीन-ऐ-नौ के फिर अम्बारख़बर करो मेरे ख़िरमन के ख़ोशा-चीनों को
जहाँ न अपने अज़ीज़ों की दीद होती हैज़मीन-ए-हिज्र पे भी कोई ईद होती है
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूरकिसे ख़बर कि तजल्ली है ऐन-ए-मस्तूरी
बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हममगर वो फ़ासला जो दिख रहा था
बस एक धुन थी समुंदर को पार करने कीमैं जानता था समुंदर के पार कुछ भी न था
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगेइंकिसारी से वही शाख़ लचक जाएगी
देती शर्बत है किसे ज़हर भरी आँख तिरीऐन एहसान है वो ज़हर भी गर देती है
ख़्वाब मेरा है ऐन बेदारीमैं तो उस में भी देखता कुछ हूँ
जहाँ तक डूबने का डर है तुम कोचलो हम साथ चलते हैं वहाँ तक
ऐन मुमकिन है उसे मुझ से मोहब्बत ही न होदिल बहर-तौर उसे अपना बनाना चाहे
ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगीआप सौदाई हैं जो कहते हैं सौदाई मुझे
ऐन मुमकिन है कि बीनाई मुझे धोका देये जो शबनम है शरारा भी तो हो सकता है
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