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शेर
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है
मह-ए-नौ की तरह खोले हुए आग़ोश आता है
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
कुछ ऐसी बन गई तस्वीर उस के दस्त-ए-क़ुदरत से
रहा हैराँ बना कर आप सूरत-आफ़रीं बरसों
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
सबा अफ़ग़ानी
शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे