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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
मोहब्बत दीन होती है वफ़ा ईमान होती है
आरज़ू लखनवी
शेर
मस्जिद में उस ने हम को आँखें दिखा के मारा
काफ़िर की शोख़ी देखो घर में ख़ुदा के मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
धुआँ लगता है आँखों में किसी के दिल के जलने का
अमीर मीनाई
शेर
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
और तो सब कुछ था लेकिन रस्म-ए-दिलदारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
तुम 'रज़ा' बन के मुसलमान जो काफ़िर ही रहे
तुम से बेहतर है वो काफ़िर जो मुसलमाँ न हुआ