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शेर
साक़ी ओ वाइज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
तौबा लब पर और लब डूबा हुआ साग़र में है
अहसन मारहरवी
शेर
निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली
इधर ला हाथ मुट्ठी खोल ये चोरी यहीं निकली
दाग़ देहलवी
शेर
तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
न थे तुम चोर दिल के लो इधर देखो ये क्या निकला
बेख़ुद देहलवी
शेर
जो पूछा मैं ने दिल ज़ुल्फ़ों में जूड़े में कहाँ बाँधा
कहा जब चोर था अपना जहाँ बाँधा वहाँ बाँधा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ
बाल बाँधा चोर हूँ हर तार-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का
अनवर देहलवी
शेर
ग़मों पर मुस्कुरा लेते हैं लेकिन मुस्कुरा कर हम
ख़ुद अपनी ही नज़र में चोर से मालूम होते हैं