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शेर
'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
शाम से ग़ाफ़िल सोने वाले देख तो कितनी रात रही