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शेर
है कोई शामिल हमारी ज़िंदगी के फ़ैसलों में
बच के जाना था जहाँ से हम वहीं टकरा गए हैं
राघवेंद्र द्विवेदी
शेर
जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते
जो मौजों से न टकराए उसे साहिल नहीं कहते
वासिफ़ देहलवी
शेर
आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल
शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग