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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
शेर
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे
ख़फ़ा बैठे रहो तुम को मनाने कौन आता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
वो ख़ुद फ़राख़ी-ए-अफ़्लाक में है ख़्वार ओ ज़ुबूँ
अल्लामा इक़बाल
शेर
ख़ुद ग़लत है जो कहे होती है तक़दीर ग़लत
कहीं क़िस्मत की भी हो सकती है तहरीर ग़लत
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है
हफ़ीज़ बनारसी
शेर
है ये तक़दीर की ख़ूबी कि निगाह-ए-मुश्ताक़
पर्दा बन जाए अगर पर्दा-नशीं तक पहुँचे