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शेर
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
शेर
हमें जिन की दीद की आस थी वो मिले तो राह में यूँ मिले
मैं नज़र उठा के तड़प गया वो नज़र उठा के गुज़र गए
शकील बदायूनी
शेर
तड़प जाता हूँ जब बिजली चमकती देख लेता हूँ
कि इस से मिलता-जुलता सा किसी का मुस्कुराना है