aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तर्क-ए-मरासिम"
किया न तर्क-ए-मरासिम पे एहतिजाज उस नेकि जैसे गुज़रे किसी मंज़िल-ए-नजात से वो
इक आदमी से तर्क-ए-मरासिम के बा'द अबक्या उस गली से कोई गुज़रना भी छोड़ दे
हम को पहले भी न मिलने की शिकायत कब थीअब जो है तर्क-ए-मरासिम का बहाना हम से
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहेंकल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगरभूला हुआ हूँ ठोकरें खाने के बअ'द भी
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूदमहसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
ये बात तर्क-ए-तअल्लुक़ के बाद हम समझेकिसी से तर्क-ए-तअल्लुक़ भी इक तअल्लुक़ है
मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बतमोहब्बत का यही इनआम भी है
तर्क-ए-मय ही समझ इसे नासेहइतनी पी है कि पी नहीं जाती
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहींबाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं
तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दियाकिस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई
बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ूक्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ कीदिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ
'फ़राज़' तर्क-ए-तअल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगायही बहुत है कि कम कम मिला करो उस से
बहुत कतरा रहे हू मुग़्बचों सेगुनाह-ए-तर्क-ए-बादा कर लिया क्या
तर्क-ए-तअल्लुक़ात पे रोया न तू न मैंलेकिन ये क्या कि चैन से सोया न तू न मैं
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोईजी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
बाद-ए-तर्क-ए-आरज़ू बैठा हूँ कैसा मुतमइनहो गई आसाँ हर इक मुश्किल ब-आसानी मिरी
तअल्लुक़ है न अब तर्क-ए-तअल्लुक़ख़ुदा जाने ये कैसी दुश्मनी है
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिएतर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
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