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शेर
अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत न बख़्शे तो शिकायत क्या
सर-ए-तस्लीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए
नवाब अली असग़र
शेर
रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमाँ हो गए
पहले जाँ फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जानाँ हो गए
तस्लीम फ़ाज़ली
शेर
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
हम इख़्तियार में हैं न दिल इख़्तियार में
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
तुम ने देखा इक नज़र से दिल तुम्हारा हो गया
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
बोसे ले लेते हैं हम दो-चार हँसते बोलते
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
जी लगा कर तुम अगर सुनते मैं कहता और भी