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शेर
ज़रा दरिया की तह तक तो पहुँच जाने की हिम्मत कर
तो फिर ऐ डूबने वाले किनारा ही किनारा है
बासित भोपाली
शेर
उन आँखों में कूदने वालो तुम को इतना ध्यान रहे
वो झीलें पायाब हैं लेकिन उन की तह पथरीली है
अब्बास ताबिश
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
ये फ़न्न-ए-इश्क़ है आवे उसे तीनत में जिस की हो
तू ज़ाहिद पीर-ए-नाबालिग़ है बे-तह तुझ को क्या आवे
मीर तक़ी मीर
शेर
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं