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शेर
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
शेर
'ताबाँ' ज़ि-बस हवा-ए-जुनूँ सर में है मिरे
अब मैं हूँ और दश्त है ये सर है और पहाड़
ताबाँ अब्दुल हई
शेर
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
जूतियाँ मारें हैं इक़बाल के सर पर हम लोग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ये मय-कदा है कलीसा ओ ख़ानक़ाह नहीं
उरूज-ए-फ़िक्र ओ फ़रोग़-ए-नज़र की मंज़िल है