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शेर
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
इश्क़ में टपकें तो हैं मोती, नफ़रत में अंगारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
शेर
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
सब बहते हुए दरियाओं के क्या दो ही किनारे होते हैं
आरज़ू लखनवी
शेर
जिस ने यारो मुझ से दावा शेर के फ़न का किया
मैं ने ले कर उस के काग़ज़ और क़लम आगे धरा