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शेर
सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ
वो ज़ुल्फ़ भी है सिलसिला-ए-अहल-ए-चिश्त में
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
अब आया ध्यान ऐ आराम-ए-जाँ इस ना-मुरादी में
कफ़न देना तुम्हें भूले थे हम अस्बाब-ए-शादी में
मीर तक़ी मीर
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर
आवाज़ से खींची है तिरी नूर की तस्वीर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
चल नग़्मा-ए-'नातिक़' सुन सहरा-ए-जुनूँ नय ला
नातिक़ गुलावठी
शेर
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
ऐ मिरी जान-ए-आरज़ू तू यूँही मुस्कुराए जा