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शेर
चमन वालों से मुझ सहरा-नशीं की बूद-ओ-बाश अच्छी
बहार आ कर चली जाती है वीरानी नहीं जाती
अख़्तर शीरानी
शेर
बूद-ओ-बाश अपनी कहें क्या कि अब उस बिन यूँ है
जिस तरह से कोई मज्ज़ूब कहीं बैठ रहा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तलातुम बाद ओ बाराँ के
मोहब्बत के सहारे कश्ती-ए-दिल है रवाँ अब तक
वासिफ़ देहलवी
शेर
चलते हो तो चमन को चलिए कहते हैं कि बहाराँ है
पात हरे हैं फूल खिले हैं कम-कम बाद-ओ-बाराँ है
मीर तक़ी मीर
शेर
सिवा तेरे हर इक शय को हटा देना है मंज़र से
और इस के ब'अद ख़ुद को बे-सर-ओ-सामान करना है
हसन अब्बास रज़ा
शेर
'जलील' इक शेर भी ख़ाली न पाया दर्द ओ हसरत से
ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं ये दर-हक़ीक़त नौहा-ख़्वानी है
जलील मानिकपूरी
शेर
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम