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शेर
बीस बरस से इक तारे पर मन की जोत जगाता हूँ
दीवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर
माजिद-अल-बाक़री
शेर
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए
उस की गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए