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शेर
सलीम अहमद
शेर
तुम से अब क्या कहें वो चीज़ है दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़
कि छुपाए न छुपे और दिखाए न बने
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
मक़ाम-ए-ज़ब्त ग़म-ए-इश्क़ में वो पैदा कर
कि तू ख़ुशी को न तरसे तुझे ख़ुशी तरसे
हामिद मुख़्तार हामिद
शेर
छुपाए हूँ मैं ग़म-ए-इश्क़ अपनी रग रग में
न चाक है मिरा दामन न आस्तीं नम है