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शेर
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
हमें तो याद नहीं कोई लम्हा-ए-इशरत
कभी तुम्हीं ने किसी दिन हँसा दिया होगा
सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी
शेर
बज़्म-ए-इशरत में मलामत हम निगूँ बख़्तों के तईं
जूँ हुबाब-ए-बादा साग़र सर-निगूँ हो जाएगा
मीर तक़ी मीर
शेर
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
दौर में क्या उस के कोई नौबत-ए-इशरत बजाए
जब कि ख़ुद गर्दूं हो इक औंधा सा नक़्क़ारा पड़ा