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शेर
अकबर इलाहाबादी
शेर
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
बढ़ी जब बे-ख़ुदी फिर कौन डरता है गुनाहों से
आरज़ू लखनवी
शेर
रूह-ओ-बदन में जारी है इक मा'रका-ए-ख़ूँ सदियों से
एक हवाला मिट्टी का है एक हवाला पानी का
मुईद रशीदी
शेर
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है
ये ख़ाका है जवानी का वो नक़्शा है लड़कपन का
अमीर मीनाई
शेर
असर सहबाई
शेर
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
क़फ़स में भी नहीं मानी शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर हम ने
सालिक लखनवी
शेर
अदा-ए-हुस्न ने बख़्शी है ताक़त-ए-परवाज़
हवा-ए-शौक़ में उड़ता हूँ बाल-ओ-पर न सही
मसलिहुद्दी अहमद असीर काकोरवी
शेर
असीर कर के हमें हुक्म दे गया सय्याद
क़फ़स हो तंग तो उन के न बाल-ओ-पर रखना
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
भरी जो हसरत-ओ-यास अपनी गुफ़्तुगू में है
ख़ुदा ही जाने कि बंदा किस आरज़ू में है