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शेर
ये हसरत रह गई क्या क्या मज़े से ज़िंदगी करते
अगर होता चमन अपना गुल अपना बाग़बाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे
कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है
अबु मोहम्मद सहर
शेर
सरक ऐ मौज सलामत तो रह-ए-साहिल ले
तुझ को क्या काम जो कश्ती मिरी तूफ़ान में है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अकेला हो रह-ए-दुनिया में गिर चाहे बहुत जीना
हुई है फ़ैज़-ए-तन्हाई से उम्र-ए-ख़िज़्र तूलानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो
वो ज़िंदगी हैं तो फिर ज़िंदगी की बात करो
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
शेर
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
जो थक के रह गया वही साबित-क़दम हुआ