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शेर
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
अहमद मुश्ताक़
शेर
मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का
फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दीवाली का
मुमताज़ गुर्मानी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो
ऐतबार साजिद
शेर
ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है
हुस्न-ए-यूसुफ़ है फ़क़त मिस्र के बाज़ार का रूप
रिन्द लखनवी
शेर
ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं
हम ने अपने ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या नक़्श उभारे हैं
जमील मलिक
शेर
है ख़ाल यूँ तुम्हारे चाह-ए-ज़क़न के अंदर
जिस रूप हो कनहय्या आब-ए-जमन के अंदर