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शेर
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
क़फ़स में भी नहीं मानी शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर हम ने
सालिक लखनवी
शेर
अदा-ए-हुस्न ने बख़्शी है ताक़त-ए-परवाज़
हवा-ए-शौक़ में उड़ता हूँ बाल-ओ-पर न सही
मसलिहुद्दी अहमद असीर काकोरवी
शेर
मिलेगा ज़ुल्फ़-ए-आज़ादी उन्हें क्या मौसम-ए-गुल में
क़फ़स से छूट कर गुलशन में जो बे-बाल-ओ-पर आए
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
शेर
खुला ये दिल पे कि तामीर-ए-बाम-ओ-दर है फ़रेब
बगूले क़ालिब-ए-दीवार-ओ-दर में होते हैं
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात
हम हों या फ़रहाद हो आख़िर आशिक़ तो मज़दूर रहा
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
शनावर किस तरह गिर्दाब से बे-दस्त-ओ-पा निकले