aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शाम"
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदासदिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
सुब्ह होती है शाम होती हैउम्र यूँही तमाम होती है
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगेमैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
शाम से आँख में नमी सी हैआज फिर आप की कमी सी है
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैंइतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भीइंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगातो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ादशाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गयाये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहामगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँदिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न होमुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाएतुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नईवर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्नाथी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें
कल थके-हारे परिंदों ने नसीहत की मुझेशाम ढल जाए तो 'मोहसिन' तुम भी घर जाया करो
बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाममुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है
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