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शेर
इब्न-ए-इंशा
शेर
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
शेर
परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती
सीमाब अकबराबादी
शेर
बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
शेर
क़ाबिल अजमेरी
शेर
दिल-ए-बेताब तरी याद से पाता है सुकूँ
ज़िंदगी तेरे तसव्वुर से सँवर जाती है
मोहम्मद फ़रीद ख़ाँ तनवीर
शेर
मिले दो वक़्त की रोटी सुकूँ से नींद आ जाए
यही पहली ज़रूरत है जिसे हम भूल जाते हैं