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शेर
दर्स-ए-इल्म-ए-इश्क़ से वाक़िफ़ नहीं मुतलक़ फ़क़ीह
नहव ही में महव है या सर्फ़ ही में सर्फ़ है
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गिर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे बा'द
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें ना-मेहरबाँ रहने दिया
अदीब सहारनपुरी
शेर
ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात
इस का भी था यक़ीं मुझे वो भी मिरे गुमाँ में था
अहमद शहरयार
शेर
वहम-ओ-क़यास के सिवा हासिल-ए-होश कुछ नहीं
फ़हम की इब्तिदा है वहम अक़्ल की हद क़यास है
फ़ानी बदायुनी
शेर
सुख़न-साज़ी में लाज़िम है कमाल-ए-इल्म-ओ-फ़न होना
महज़ तुक-बंदियों से कोई शाएर हो नहीं सकता