aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "हुनर"
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आताकिसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र देहाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम हैजिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुएहक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनरपड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा
शर्त सलीक़ा है हर इक अम्र मेंऐब भी करने को हुनर चाहिए
मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पायाउस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता
हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम कोयही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
वो साफ़-गो है मगर बात का हुनर सीखेबदन हसीं है तो क्या बे-लिबास आएगा
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम मेंमुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ीहुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का
हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थेबे-सबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
क़लम उठाऊँ कि बच्चों की ज़िंदगी देखूँपड़ा हुआ है दोराहे पे अब हुनर मेरा
फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक होहम आदमी हैं तो ऐब-ओ-हुनर भी रखते हैं
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगेरोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे
देखा मुझे तो तर्क-ए-तअल्लुक़ के बावजूदवो मुस्कुरा दिया ये हुनर भी उसी का था
हर बज़्म क्यूँ नुमाइश-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर बनेहर भेद अपने दोस्तों के दरमियाँ न खोल
सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैंन आया हमें ये हुनर ज़िंदगी भर
हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिएकुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए
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