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शेर
क्या करूँ ख़िलअत ओ दस्तार की ख़्वाहिश कि मुझे
ज़ीस्त करने का सलीक़ा भी ज़ियाँ से आया
अब्बास रिज़वी
शेर
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
क़ासिद-ए-जानाँ को क्या देता जो ख़िलअत माँगता
आग़ा अकबराबादी
शेर
सुन ऐ कोह-ओ-दमन को सब्ज़ ख़िलअत बख़्शने वाले
नहीं मिलता तिरे दर से ग़रीबों को कफ़न अब तक
निसार इटावी
शेर
हिरन सब हैं बराती और दिवाना बन का दूल्हा है
पहर ख़िलअ'त कूँ उर्यानी की फिरता है बना छैला
सिराज औरंगाबादी
शेर
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
ज़ेहरा निगाह
शेर
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
शेर
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं