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शेर
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
जिस को आग़ोश-ए-मोहब्बत कभी हासिल न हुआ
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
या-रब मिरा हम-ख़्वाब ओ हम-आग़ोश कहाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
सुरूर-ए-जाँ-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को
कि जैसे भी हों बच्चे माँ को प्यारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
शेर
आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा
अब हाथ तिरी ख़ातिर फैलाऊँ तो कुछ कहना