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शेर
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं
बशीर बद्र
शेर
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
तिरे फ़िराक़ की सदियाँ तिरे विसाल के पल
शुमार-ए-उम्र में ये माह ओ साल से कुछ हैं