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शेर
कैफ़ इक्रामी
शेर
छुपाए हूँ मैं ग़म-ए-इश्क़ अपनी रग रग में
न चाक है मिरा दामन न आस्तीं नम है
जागेश्वर दयाल नश्तर कानपुरी
शेर
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें