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शेर
ख़याल क्या है जो अल्फ़ाज़ तक न पहुँचे 'साज़'
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है
अब्दुल अहद साज़
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं