aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जंग का हथियार तय कुछ और थातीर सीने में उतारा और है
जिस की बातों के फ़साने लिक्खेउस ने तो कुछ न कहा था शायद
रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थीशायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा हैचिड़ियों को बहुत प्यार था उस बूढे शजर से
'अल्वी' ने आज दिन में कहानी सुनाई थीशायद इसी वजह से मैं रस्ता भटक गया
लफ़्ज़ को इल्हाम मअ'नी को शरर समझा था मैंदर-हक़ीक़त ऐब था जिस को हुनर समझा था मैं
सिसकियाँ भर के 'शरर' कौन वहाँ रोता थाख़ेमा-ए-ख़्वाब सर-ए-शाम जहाँ पर टूटा
उन संग-ज़नों में कोई अपना भी था शायदजो ढेर से ये क़ीमती पत्थर निकल आए
पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ थारूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया थाहमारी साल-गिरह ठीक अब के माह में है
एक रौशन दिमाग़ था न रहाशहर में इक चराग़ था न रहा
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी थाहम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिएकहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
हारने में इक अना की बात थीजीत जाने में ख़सारा और है
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का थामिरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठाआँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब थापर क्या करें कि अब के सफ़र ही अजीब था
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भीइंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगरजाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगाक्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
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