aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "amaanat"
क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देतेमाशूक़ हो या कोई अमानत हो किसी की
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलोधड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
किस तरह 'अमानत' न रहूँ ग़म से मैं दिल-गीरआँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत
बोसा आँखों का जो माँगा तो वो हँस कर बोलेदेख लो दूर से खाने के ये बादाम नहीं
मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेनाये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए
ये दर्द कि है तेरी मोहब्बत की अमानतमर जाएँगे इस दर्द का दरमाँ न करेंगे
जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसारबुत को बिठा के सामने याद-ए-ख़ुदा करूँ
घर मिरे शब को जो वो रश्क-ए-क़मर आ निकलाहो गए परतव-ए-रुख़ से दर ओ दीवार सफ़ेद
ऐ अजल कुछ ज़िंदगी का हक़ भी हैज़िंदगी तेरी अमानत ही सही
किस क़दर दिल से फ़रामोश किया आशिक़ कोन कभी आप को भूले से भी मैं याद आया
वतन-परस्ती हमारा मज़हब हैं जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानतकरेंगे बरपा क़हर अदू पर रहेगा दाइम वतन सलामत
महशर का किया वा'दा याँ शक्ल न दिखलाईइक़रार इसे कहते हैं इंकार इसे कहते हैं
हिज्र था बार-ए-अमानत की तरहसो ये ग़म आख़िरी हिचकी से उठा
जिस रात खुला मुझ पे वो महताब की सूरतवो रात सितारों की अमानत है सहर तक
वहम ही वहम में अपनी हुई औक़ात बसरकमर-ए-यार को भूले तो दहन याद आया
अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल मेंआँख वालों के लिए है ये अमानत मेरी
चुटकियाँ दिल में मिरे लेने लगा नाख़ुन-ए-इश्क़गुल-बदन देख के उस गुल का बदन याद आया
गाली के सिवा हाथ भी चलता है अब उन काहर रोज़ नई होती है बेदाद की सूरत
है लुत्फ़ हसीनों की दो-रंगी का 'अमानत'दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती
दामन पे लोटने लगे गिर गिर के तिफ़्ल-ए-अश्करोए फ़िराक़ में तो दिल अपना बहल गया
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