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शेर
रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
कहते हैं फ़रिश्ते तुझे जय अर्श-ए-बरीं पर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जब अर्श-ए-मुअल्ला पे मिरे नक़्श-ए-क़दम हैं
क्या चीज़ है फिर औज-ए-सुरय्या मिरे आगे
मोईद रहबर लखनवी
शेर
हर-चंद कि आसी हूँ प उम्मत में हूँ उस की
जिस का है क़दम अर्श-ए-मुअ'ल्ला से भी बाला
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल हम ने सुब्ह-ओ-शाम किया
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
वक़्त बे-मेहर है इस फ़ुर्सत-ए-कमयाब में तुम
मेरी आँखों में रहो ख़्वाब-ए-मुजस्सम की तरह