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शेर
ऐ हसरत-ए-दिल गो वस्ल हुआ पर शौक़ हमारा कम न हुआ
जिस से कि ख़लिश कुछ और बढ़े वो ज़ख़्म हुआ मरहम न हुआ
सुहैल अज़ीमाबादी
शेर
हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
जोड़ दे माज़ी के सब औराक़ मुस्तक़बिल के साथ
फ़िगार उन्नावी
शेर
दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
बोसे ले लेते हैं हम दो-चार हँसते बोलते
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
अश्क-ए-हसरत दीदा-ए-दिल से हैं जारी इन दिनों
कार-ए-तूफाँ कर रही है अश्क-बारी इन दिनों
मर्दान अली खां राना
शेर
शाद अज़ीमाबादी
शेर
ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
मिरा वो राज़ तेरे हिज्र ने पहुँचा दिया सब तक
क़तील शिफ़ाई
शेर
है दिल में जोश-ए-हसरत रुकते नहीं हैं आँसू
रिसती हुई सुराही टूटा हुआ सुबू हूँ