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शेर
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
इस तरह बे-कैफ़ गुज़रा ऐ 'हबीब' अपना शबाब
जिस तरह से सूने घर में जलता है कोई चराग़
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
शेर
ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
किसी ने टुकड़े कर के सब हमारी दास्ताँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
शेर
इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़
आँखें बाज़ार में यूँ उस को न मटकाना था